Saturday, July 14, 2007

उतरे राम देवसरि देखी कीन्ह दंडवत हरषु बिसेषी

राम दरस हित नेम ब्रत लगे करन नर नारि
मनहुँ कोक कोकी कमल दीन बिहीन तमारि

सीता सचिव सहित दोउ भाई सृंगबेरपुर पहुँचे जाई
उतरे राम देवसरि देखी कीन्ह दंडवत हरषु बिसेषी
गंग सकल मुद मंगल मूला सब सुख करनि हरनि सब सूला
कहि कहि कोटिक कथा प्रसंगा रामु बिलोकहिं गंग तरंगा
सचिवहि अनुजहि प्रियहि सुनाई बिबुध नदी महिमा अधिकाई
मज्जनु कीन्ह पंथ श्रम गयऊ सुचि जलु पिअत मुदित मन भयऊ
सुमिरत जाहि मिटइ श्रम भारू तेहि श्रम यह लौकिक ब्यवहारू
सुध्द सचिदानंदमय कंद भानुकुल केतु
चरित करत नर अनुहरत संसृति सागर सेतु