Friday, July 13, 2007

तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ

पाइ रजायसु नाइ सिरु रथु अति बेग बनाइ
गयउ जहाँ बाहेर नगर सीय सहित दोउ भाइ

तब सुमंत्र नृप बचन सुनाए करि बिनती रथ रामु चढ़ाए
चढ़ि रथ सीय सहित दोउ भाई चले हृदयँ अवधहि सिरु नाई
चलत रामु लखि अवध अनाथा बिकल लोग सब लागे साथा
कृपासिंधु बहुबिधि समुझावहिं फिरहिं प्रेम बस पुनि फिरि आवहिं
राम बियोग बिकल सब ठाढ़े जहँ तहँ मनहुँ चित्र लिखि काढ़े
नगरु सफल बनु गहबर भारी खग मृग बिपुल सकल नर नारी
बिधि कैकेई किरातिनि कीन्ही जेंहि दव दुसह दसहुँ दिसि दीन्ही
सहि सके रघुबर बिरहागी चले लोग सब ब्याकुल भागी
सबहिं बिचार कीन्ह मन माहीं राम लखन सिय बिनु सुखु नाहीं
जहाँ रामु तहँ सबुइ समाजू बिनु रघुबीर अवध नहिं काजू
चले साथ अस मंत्रु दृढ़ाई सुर दुर्लभ सुख सदन बिहाई।
राम चरन पंकज प्रिय जिन्हही बिषय भोग बस करहिं कि तिन्हही
बालक बृद्ध बिहाइ गृँह लगे लोग सब साथ
तमसा तीर निवासु किय प्रथम दिवस रघुनाथ