Saturday, June 2, 2007

कवनें अवसर का भयउ गयउँ नारि बिस्वास



मागु मागु पै कहहु पिय कबहुँ देहु लेहु
देन कहेहु बरदान दुइ तेउ पावत संदेहु

थाति राखि मागिहु काऊ बिसरि गयउ मोहि भोर सुभाऊ
झूठेहुँ हमहि दोषु जनि देहू दुइ कै चारि मागि मकु लेहू
रघुकुल रीति सदा चलि आई प्रान जाहुँ बरु बचनु जाई
सुनहु प्रानप्रिय भावत जी का देहु एक बर भरतहि टीका
मागउँ दूसर बर कर जोरी पुरवहु नाथ मनोरथ मोरी
तापस बेष बिसेषि उदासी चौदह बरिस रामु बनबासी


कवनें अवसर का भयउ गयउँ नारि बिस्वास
जोग सिद्धि फल समय जिमि जतिहि अबिद्या नास