कोउ न बुझाइ कहइ गुर पाहीं ए बालक असि हठ भलि नाहीं
रावन बान छुआ नहिं चापा हारे सकल भूप करि दापासो धनु राजकुअँर कर देहीं बाल मराल कि मंदर लेहीं
भूप सयानप सकल सिरानी सखि बिधि गति कछु जाति न जानी
बोली चतुर सखी मृदु बानी तेजवंत लघु गनिअ न रानी
कहँ कुंभज कहँ सिंधु अपारा सोषेउ सुजसु सकल संसारा
रबि मंडल देखत लघु लागा उदयँ तासु तिभुवन तम भागा
तब रामहि बिलोकि बैदेही सभय हृदयँ बिनवति जेहि तेही
मनहीं मन मनाव अकुलानी होहु प्रसन्न महेस भवानी
करहु सफल आपनि सेवकाई करि हितु हरहु चाप गरुआई
गननायक बरदायक देवा आजु लगें कीन्हिउँ तुअ सेवा
बार बार बिनती सुनि मोरी करहु चाप गुरुता अति थोरी
देखि देखि रघुबीर तन सुर मनाव धरि धीर
भरे बिलोचन प्रेम जल पुलकावली सरीर
प्रभुहि चितइ पुनि चितव महि राजत लोचन लोल
खेलत मनसिज मीन जुग जनु बिधु मंडल डोल
-गिरा अलिनि मुख पंकज रोकी प्रगट न लाज निसा अवलोकी
लोचन जलु रह लोचन कोना जैसे परम कृपन कर सोना
सकुची ब्याकुलता बड़ि जानी धरि धीरजु प्रतीति उर आनी
तन मन बचन मोर पनु साचा रघुपति पद सरोज चितु राचा
तौ भगवानु सकल उर बासी करिहि मोहि रघुबर कै दासी
जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू
प्रभु तन चितइ प्रेम तन ठाना कृपानिधान राम सबु जाना
सियहि बिलोकि तकेउ धनु कैसें चितव गरुरु लघु ब्यालहि जैसें
रामु चहहिं संकर धनु तोरा होहु सजग सुनि आयसु मोरा
चाप सपीप रामु जब आए। नर नारिन्ह सुर सुकृत मनाए
सब कर संसउ अरु अग्यानू। मंद महीपन्ह कर अभिमानू
भृगुपति केरि गरब गरुआई। सुर मुनिबरन्ह केरि कदराई
सिय कर सोचु जनक पछितावा। रानिन्ह कर दारुन दुख दावा
संभुचाप बड़ बोहितु पाई। चढ़े जाइ सब संगु बनाई
राम बाहुबल सिंधु अपारू चहत पारु नहि कोउ कड़हारू
राम बिलोके लोग सब चित्र लिखे से देखि
तृषित बारि बिनु जो तनु त्यागा मुएँ करइ का सुधा तड़ागा
का बरषा सब कृषी सुखानें समय चुकें पुनि का पछितानें
अस जियँ जानि जानकी देखी प्रभु पुलके लखि प्रीति बिसेषी
गुरहि प्रनामु मनहि मन कीन्हा अति लाघवँ उठाइ धनु लीन्हा
दमकेउ दामिनि जिमि जब लयऊ पुनि नभ धनु मंडल सम भयऊ
लेत चढ़ावत खैंचत गाढ़ें काहुँ न लखा देख सबु ठाढ़ें
तेहि छन राम मध्य धनु तोरा भरे भुवन धुनि घोर कठोरा