Friday, June 1, 2007

जय जय गिरिबरराज किसोरी

जय जय गिरिबरराज किसोरी जय महेस मुख चंद चकोरी
जय गज बदन षडानन माता जगत जननि दामिनि दुति गाता
नहिं तव आदि मध्य अवसाना अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना
भव भव बिभव पराभव कारिनि बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि
पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख
महिमा अमित सकहिं कहि सहस सारदा सेष

सेवत तोहि सुलभ फल चारी बरदायनी पुरारि पिआरी
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे
मोर मनोरथु जानहु नीकें बसहु सदा उर पुर सबही कें
कीन्हेउँ प्रगट कारन तेहीं अस कहि चरन गहे बैदेहीं
बिनय प्रेम बस भई भवानी खसी माल मूरति मुसुकानी
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ
सुनु सिय सत्य असीस हमारी पूजिहि मन कामना तुम्हारी
नारद बचन सदा सुचि साचा सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली
जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु जाइ कहि
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे