Sunday, June 3, 2007

आसुतोष तुम्ह अवढर दानी आरति हरहु दीन जनु जानी

परी राजहि नीद निसि हेतु जान जगदीसु
रामु रामु रटि भोरु किय कहइ मरमु महीसु


सुनहु राम सबु कारन एहू राजहि तुम पर बहुत सनेहू
देन कहेन्हि मोहि दुइ बरदाना मागेउँ जो कछु मोहि सोहाना
सो सुनि भयउ भूप उर सोचू छाड़ि सकहिं तुम्हार सँकोचू
सुत सनेह इत बचनु उत संकट परेउ नरेसु
सकहु आयसु धरहु सिर मेटहु कठिन कलेसु

गइ मुरुछा रामहि सुमिरि नृप फिरि करवट लीन्ह
सचिव राम आगमन कहि बिनय समय सम कीन्ह


सुमिरि महेसहि कहइ निहोरी बिनती सुनहु सदासिव मोरी
आसुतोष तुम्ह अवढर दानी आरति हरहु दीन जनु जानी
तुम्ह प्रेरक सब के हृदयँ सो मति रामहि देहु
बचनु मोर तजि रहहि घर परिहरि सीलु सनेहु