सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम
रहेउ एक दिन अवधि अधारा समुझत मन दुख भयउ अपारा
कारन कवन नाथ नहिं आयउ जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ
मोरि जियँ भरोस दृढ़ सोई मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई
बीतें अवधि रहहि जौं प्राना अधम कवन जग मोहि समाना
राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत
बिप्र रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जनु पोत
बैठि देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात
राम राम रघुपति जपत स्त्रवत नयन जलजात
कारन कवन नाथ नहिं आयउ जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ
मोरि जियँ भरोस दृढ़ सोई मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई
बीतें अवधि रहहि जौं प्राना अधम कवन जग मोहि समाना
राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत
बिप्र रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जनु पोत
बैठि देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात
राम राम रघुपति जपत स्त्रवत नयन जलजात
आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु
प्रभु मिलत अनुजहि सोह मो पहिं जाति नहिं उपमा कही
पुनि प्रभु हरषि सत्रुहन भेंटे हृदयँ लगाइ
लछिमन भरत मिले तब परम प्रेम दोउ भाइ
लछिमन भरत मिले तब परम प्रेम दोउ भाइ
सासुन्ह सबनि मिली बैदेही चरनन्हि लागि हरषु अति तेही
लछिमन अरु सीता सहित प्रभुहि बिलोकति मातु
परमानंद मगन मन पुनि पुनि पुलकित गातु
परमानंद मगन मन पुनि पुनि पुलकित गातु
पुनि रघुपति सब सखा बोलाए मुनि पद लागहु सकल सिखाए
गुर बसिष्ट कुलपूज्य हमारे इन्ह की कृपाँ दनुज रन मारे
गुर बसिष्ट कुलपूज्य हमारे इन्ह की कृपाँ दनुज रन मारे
नाना भाँति सुमंगल साजे हरषि नगर निसान बहु बाजे
गुर बसिष्ट द्विज लिए बुलाई आजु सुघरी सुदिन समुदाई
सब द्विज देहु हरषि अनुसासन रामचंद्र बैठहिं सिंघासन
सब द्विज देहु हरषि अनुसासन रामचंद्र बैठहिं सिंघासन
जनकसुता समेत रघुराई पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई
बेद मंत्र तब द्विजन्ह उचारे नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे
प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा
सुत बिलोकि हरषीं महतारी बार बार आरती उतारी
बेद मंत्र तब द्विजन्ह उचारे नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे
प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा
सुत बिलोकि हरषीं महतारी बार बार आरती उतारी
बिप्रन्ह दान बिबिध बिधि दीन्हे जाचक सकल अजाचक कीन्हे
नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं
भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते
वह सोभा समाज सुख कहत न बनइ खगेस
बरनहिं सारद सेष श्रुति सो रस जान महेस
भिन्न भिन्न अस्तुति करि गए सुर निज निज धाम।
बंदी बेष बेद तब आए जहँ श्रीराम
प्रभु सर्बग्य कीन्ह अति आदर कृपानिधान
लखेउ न काहूँ मरम कछु लगे करन गुन गान