Wednesday, May 21, 2008

सीता सहित अवध कहुँ कीन्ह कृपाल प्रनाम सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम

सीता सहित अवध कहुँ कीन्ह कृपाल प्रनाम
सजल नयन तन पुलकित पुनि पुनि हरषित राम

रहेउ एक दिन अवधि अधारा समुझत मन दुख भयउ अपारा
कारन कवन नाथ नहिं आयउ जानि कुटिल किधौं मोहि बिसरायउ
मोरि जियँ भरोस दृढ़ सोई मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई
बीतें अवधि रहहि जौं प्राना अधम कवन जग मोहि समाना
राम बिरह सागर महँ भरत मगन मन होत
बिप्र रूप धरि पवन सुत आइ गयउ जनु पोत
बैठि देखि कुसासन जटा मुकुट कृस गात
राम राम रघुपति जपत स्त्रवत नयन जलजात


आवत देखि लोग सब कृपासिंधु भगवान
नगर निकट प्रभु प्रेरेउ उतरेउ भूमि बिमान

उतरि कहेउ प्रभु पुष्पकहि तुम्ह कुबेर पहिं जाहु
प्रेरित राम चलेउ सो हरषु बिरहु अति ताहु

प्रभु मिलत अनुजहि सोह मो पहिं जाति नहिं उपमा कही

पुनि प्रभु हरषि सत्रुहन भेंटे हृदयँ लगाइ
लछिमन भरत मिले तब परम प्रेम दोउ भाइ

सासुन्ह सबनि मिली बैदेही चरनन्हि लागि हरषु अति तेही

लछिमन अरु सीता सहित प्रभुहि बिलोकति मातु
परमानंद मगन मन पुनि पुनि पुलकित गातु

पुनि रघुपति सब सखा  बोलाए  मुनि पद लागहु सकल सिखाए
गुर बसिष्ट कुलपूज्य हमारे इन्ह की कृपाँ दनुज रन मारे


नाना भाँति सुमंगल साजे   हरषि नगर निसान बहु बाजे


गुर बसिष्ट द्विज लिए बुलाई आजु सुघरी सुदिन समुदाई
सब द्विज देहु हरषि अनुसासन रामचंद्र बैठहिं सिंघासन

जनकसुता समेत रघुराई पेखि प्रहरषे मुनि समुदाई
बेद मंत्र तब द्विजन्ह उचारे नभ सुर मुनि जय जयति पुकारे
प्रथम तिलक बसिष्ट मुनि कीन्हा पुनि सब बिप्रन्ह आयसु दीन्हा
सुत बिलोकि हरषीं महतारी बार बार आरती उतारी

बिप्रन्ह दान बिबिध बिधि दीन्हे जाचक सकल अजाचक कीन्हे



नाचहिं अपछरा बृंद परमानंद सुर मुनि पावहीं
भरतादि अनुज बिभीषनांगद हनुमदादि समेत ते


वह सोभा समाज सुख कहत बनइ खगेस
बरनहिं सारद सेष श्रुति सो रस जान महेस

भिन्न भिन्न अस्तुति करि गए सुर निज निज धाम।


बंदी बेष बेद तब आए जहँ श्रीराम


प्रभु सर्बग्य कीन्ह अति आदर कृपानिधान
लखेउ काहूँ मरम कछु लगे करन गुन गान