Sunday, December 23, 2007

मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ अपराधिहु पर कोह न काऊ

मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ अपराधिहु पर कोह काऊ
मो पर कृपा सनेह बिसेषी खेलत खुनिस कबहूँ देखी
सिसुपन तेम परिहरेउँ संगू कबहुँ कीन्ह मोर मन भंगू
मैं प्रभु कृपा रीति जियँ जोही हारेहुँ खेल जितावहिं मोही