मैं जानउँ निज नाथ सुभाऊ अपराधिहु पर कोह न काऊ मो पर कृपा सनेह बिसेषी खेलत खुनिस न कबहूँ देखी सिसुपन तेम परिहरेउँ न संगू कबहुँ न कीन्ह मोर मन भंगू मैं प्रभु कृपा रीति जियँ जोही हारेहुँ खेल जितावहिं मोही