केरि केहरि कपि कोल कुरंगा बिगतबैर बिचरहिं सब संगा
फिरत अहेर राम छबि देखी होहिं मुदित मृगबंद बिसेषी
बिबुध बिपिन जहँ लगि जग माहीं देखि राम बनु सकल सिहाहीं
सुरसरि सरसइ दिनकर कन्या मेकलसुता गोदावरि धन्या
सब सर सिंधु नदी नद नाना मंदाकिनि कर करहिं बखाना
उदय अस्त गिरि अरु कैलासू मंदर मेरु सकल सुरबासू
सैल हिमाचल आदिक जेते चित्रकूट जसु गावहिं तेते
बिंधि मुदित मन सुखु न समाई श्रम बिनु बिपुल बड़ाई पाई
चित्रकूट के बिहग मृग बेलि बिटप तृन जाति
पुन्य पुंज सब धन्य अस कहहिं देव दिन राति
नयनवंत रघुबरहि बिलोकी पाइ जनम फल होहिं बिसोकी
परसि चरन रज अचर सुखारी भए परम पद के अधिकारी
सो बनु सैलु सुभायँ सुहावन मंगलमय अति पावन पावन
महिमा कहिअ कवनि बिधि तासू सुखसागर जहँ कीन्ह निवासू
पय पयोधि तजि अवध बिहाई जहँ सिय लखनु रामु रहे आई