Thursday, October 9, 2008

मंगल भवन अमंगल हारी

Hare Rama


मंगल भवन अमंगल हारी  
द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी

निज अनुभव अब कहउँ खगेसा बिनु हरि भजन जाहि कलेसा
राम कृपा बिनु सुनु खगराई जानि जाइ राम प्रभुताई
जानें बिनु होइ परतीती बिनु परतीति होइ नहिं प्रीती
प्रीति बिना नहिं भगति दिढ़ाई जिमि खगपति जल कै चिकनाई


बिनु गुर होइ कि ग्यान ग्यान कि होइ बिराग बिनु
गावहिं बेद पुरान सुख कि लहिअ हरि भगति बिनु
कोउ बिश्राम कि पाव तात सहज संतोष बिनु
चलै कि जल बिनु नाव कोटि जतन पचि पचि मरिअ

बिनु संतोष काम नसाहीं काम अछत सुख सपनेहुँ नाहीं
राम भजन बिनु मिटहिं कि कामा थल बिहीन तरु कबहुँ कि जामा
बिनु बिग्यान कि समता आवइ कोउ अवकास कि नभ बिनु पावइ
श्रद्धा बिना धर्म नहिं होई बिनु महि गंध कि पावइ कोई
बिनु तप तेज कि कर बिस्तारा जल बिनु रस कि होइ संसारा
सील कि मिल बिनु बुध सेवकाई जिमि बिनु तेज रूप गोसाई
निज सुख बिनु मन होइ कि थीरा परस कि होइ बिहीन समीरा
कवनिउ सिद्धि कि बिनु बिस्वासा बिनु हरि भजन भव भय नासा

बिनु बिस्वास भगति नहिं तेहि बिनु द्रवहिं रामु
राम कृपा बिनु सपनेहुँ जीव लह बिश्रामु

मुनि दुर्लभ हरि भगति नर पावहिं बिनहिं प्रयास
जे यह कथा निरंतर सुनहिं मानि बिस्वास

राम कथा गिरिजा मैं बरनी कलि मल समनि मनोमल हरनी
संसृति रोग सजीवन मूरी राम कथा गावहिं श्रुति सूरी
एहि महँ रुचिर सप्त सोपाना रघुपति भगति केर पंथाना
अति हरि कृपा जाहि पर होई पाउँ देइ एहिं मारग सोई
मन कामना सिद्धि नर पावा जे यह कथा कपट तजि गावा
कहहिं सुनहिं अनुमोदन करहीं ते गोपद इव भवनिधि तरहीं
सुनि सब कथा हृदयँ अति भाई गिरिजा बोली गिरा सुहाई
नाथ कृपाँ मम गत संदेहा राम चरन उपजेउ नव नेहा
मैं कृतकृत्य भइउँ अब तव प्रसाद बिस्वेस
उपजी राम भगति दृढ़ बीते सकल कलेस

यह सुभ संभु उमा संबादा सुख संपादन समन बिषादा
भव भंजन गंजन संदेहा जन रंजन सज्जन प्रिय एहा
राम उपासक जे जग माहीं एहि सम प्रिय तिन्ह के कछु नाहीं
रघुपति कृपाँ जथामति गावा मैं यह पावन चरित सुहावा
एहिं कलिकाल साधन दूजा जोग जग्य जप तप ब्रत पूजा
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि
जासु पतित पावन बड़ बाना गावहिं कबि श्रुति संत पुराना
ताहि भजहि मन तजि कुटिलाई राम भजें गति केहिं नहिं पाई
पाई केहिं गति पतित पावन राम भजि सुनु सठ मन
गनिका अजामिल ब्याध गीध गजादि खल तारे घना
आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघरूप जे
कहि नाम बारक तेपि पावन होहिं राम नमामि ते
रघुबंस भूषन चरित यह नर कहहिं सुनहिं जे गावहीं
कलि मल मनोमल धोइ बिनु श्रम राम धाम सिधावहीं
सत पंच चौपाईं मनोहर जानि जो नर उर धरै
दारुन अबिद्या पंच जनित बिकार श्रीरघुबर हरै
सुंदर सुजान कृपा निधान अनाथ पर कर प्रीति जो
सो एक राम अकाम हित निर्बानप्रद सम आन को
जाकी कृपा लवलेस ते मतिमंद तुलसीदासहूँ
पायो परम बिश्रामु राम समान प्रभु नाहीं कहूँ


मो सम दीन दीन हित तुम्ह समान रघुबीर
अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर
कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभहि प्रिय जिमि दाम
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम

Hare Rama 

ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ

Hare Rama




एक बार प्रभु सुख आसीना लछिमन बचन कहे छलहीना
सुर नर मुनि सचराचर साईं मैं पूछउँ निज प्रभु की नाई
मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा सब तजि करौं चरन रज सेवा
कहहु ग्यान बिराग अरु माया कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया

ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ
जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ

थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई सुनहु तात मति मन चित लाई
मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया
गो गोचर जहँ लगि मन जाई सो सब माया जानेहु भाई
तेहि कर भेद सुनहु तुम्ह सोऊ बिद्या अपर अबिद्या दोऊ
एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा जा बस जीव परा भवकूपा।।
एक रचइ जग गुन बस जाकें प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें
ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं देख ब्रह्म समान सब माही
कहिअ तात सो परम बिरागी तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी

माया ईस आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव
बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव

धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना
जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई सो मम भगति भगत सुखदाई
सो सुतंत्र अवलंब आना तेहि आधीन ग्यान बिग्याना
भगति तात अनुपम सुखमूला मिलइ जो संत होइँ अनुकूला
भगति कि साधन कहउँ बखानी सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी
प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती निज निज कर्म निरत श्रुति रीती
एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा तब मम धर्म उपज अनुरागा
श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं मम लीला रति अति मन माहीं
संत चरन पंकज अति प्रेमा मन क्रम बचन भजन दृढ़ नेमा
गुरु पितु मातु बंधु पति देवा सब मोहि कहँ जाने दृढ़ सेवा
मम गुन गावत पुलक सरीरा गदगद गिरा नयन बह नीरा
काम आदि मद दंभ जाकें तात निरंतर बस मैं ताकें

बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम
तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम
Hare Rama